Indore Cancer Foundation Charitable Trust

मैं शीतल प्रियंक पावेचा। मेरा एक बेटा है 5 साल का और एक बेटी है 9 माह की। जब मेरी बेटी 3 माह की थी तब मुझे ब्रेस्ट में गांठ महसूस हुई। जांच कराई गई जिसमें कैंसर आया। मेरी उम्र कम साथ ही दूध पीती बच्ची, घबराने की टेंशन की बात थी परंतु मैंने अपने आप को ढाढस बन्धाया कि अब बीमारी आई है तो इससे कैसे ठीक होना है यह समझना है। कैंसर का सुनने के बाद भी में मेरे परिवार जन के सामाने सामान्य रही जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मेरे परिवार की राय से डॉक्टर दिगपालजी धारकर से मेरी ब्रेस्ट सर्जरी का निर्णय लिया गया। कोरोना का समय चल रहा था, ऑपरेशन के लिए सभी जरूरी जांच की गई जिसमें कोविड-19 की जांच भी हुई। ऑपरेशन की पूरी तैयारी हो चुकी थी परंतु कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया। मन में प्रश्न भी आया कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है? लौकडाउन में डिलीवरी, कैंसर और आब कोरोना। परंतु मैंने हार नहीं मानी। बल्कि में कोरोना टेस्ट पॉजिटिव सुनकर अचंभित थी। साथ ही मेरे परिवारजन, अस्पताल का स्टाफ भी अचंभित था। परंतु मुझे आत्मविश्वास था कि यह रिपोर्ट गलत है। ऑपरेशन में देरी नहीं करनी थी इस कारण परिवारजन ने निजी लेब में तीन बार जांच कराई। सारी रिपोर्ट नेगेटिव आई। मेरे परिवारजन, डॉक्टरस, सभी को डर था कि मैं टेंशन ना लू। परंतु आत्मविश्वास, हिम्मत, परिवारजन, डॉक्टर सभी के सहयोग से मैं और मजबूत हो गई।

मेरी सर्जरी हुई, कीमोथेरेपी हुई। अब मैं स्वस्थ हूं। उम्र छोटी है बीमारी बड़ी है परंतु मुझे लगता है यदि आत्मविश्वास है तो सब कुछ possible है। हताश होने से कभी कुछ नहीं होता। परेशानी आई है तो उसके बारे में नकारात्मक सोचने से अच्छा है समय का सदुपयोग करके यह सोचे कि इसमें क्या अच्छा हो सकता है। यदि आज मैं कैंसर, कोरोना को लेकर रोती या गंभीर होती तो शायद मेरे परिवारजन भी हिम्मत न जुटा पाते। परंतु आज मेरी हिम्मत, आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच से मुझे मेरे परिवारजन का बहुत सहयोग मिला।

आज इस लेख के ज़रिए यही बताना चाहती हूँ कि कैंसर बड़ी बीमारी जरूर है परंतु आज विज्ञान ने भी बहुत तरक्की कर ली है। साथ ही जिस तरह एक छोटा बच्चा अपने पैरों पर खड़ा होकर चलना सीखता है, वह बहुत बार गिरता है, उठता है, कभी सहयोग के लिए दूसरे के हाथ का सहारा भी लेता है लेकिन खुद से चलने में कामयाब हो ही जाता है। ठीक उसी तरह कैंसर के लिए सही इलाज होना जरूरी है और कैंसर पीड़ित व्यक्ति जब तक खुद से यह नहीं सोचेगा कि मुझे ठीक होना है वह नहीं हो सकता फिर भले ही डॉक्टर, परिवारजन, रिश्तेदार, दोस्त, कोई भी कितनी ही कोशिश कर ले।

“कैंसर बीमारी का सबसे रामबाण इलाज है आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच।”

कीमोथेरेपी में तकलीफ होती है। मैंने खुद ने भी महसूस की। बल्कि सर्जरी के बाद कीमो का वक्त ज्यादा कठिन है। परंतु जो तकलीफ हुई उस पर ध्यान ना देते हुए मैं हर समय यही सोचती रही कि मुझे जागरूकता फैलानी है, मुझे इस बीमारी से लड़ना है, साथ ही मेरे जैसे जो भी व्यक्ति इस से पीड़ित है उनका मनोबल, आत्मविश्वास बढाना है। जागरूकता फैलानी है। इस को बीमारी को बीमारी ना समझ कर जीवन का लक्ष्य बनाना है और यहीं से  यह मेरा पहला कदम है।

Blog by Sheetal Pavecha